मदर टेरेसा पर निबंध हिंदी में | Essay on Mother Teresa in Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध हिंदी में (Essay on Mother Teresa in Hindi)

मदर टेरेसा "शांति और दया की दूत "

 मदर टेरेसा भारत की सबसे बड़ी सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक थीं।  वह बड़े दिल वाली एक अच्छी और दयालु महिला थीं।  मदर टेरेसा "शांति और दया की दूत " ने एक सामाजिक और सामूहिक सेवा प्रदान की जो केवल परमेश्वर के अनुयायी प्रदान कर सकते हैं, अतः उन्हे परमेश्वर के दूत के रूप में संदर्भित करना गलत नहीं होगा। 


शांति की दूत मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंजालो बोजाशिन था। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 को यूरोप के स्कोप्जे, मैसेडोनिया (ओटोमन साम्राज्य) में हुआ था।  उनका जन्म एक अल्बानियाई दंपति के घर हुआ था। उनके पिता एक 'बिल्डर', धर्मार्थ और स्वभाव से दयालु थे, और उनकी माँ एक धर्मपरायण  महिला थीं। इस परिवार में तीन बच्चे थे - बहन 'एज', भाई 'लेजर' और लड़की गोंझ (Gonzh) । गोंझ को अपनी मां से ज्यादा लगाव था।

मदर टेरेसा की प्रारंभिक जीवन 

बचपन में, उनके माता-पिता उन्हें 'गोंज'  (Gonzh) कहते थे, जिसका अर्थ अलवानी भाषा में 'फूल' होता है। उनमें बचपन से ही सेवा भाव विद्यमान था। लड़की गोंज हमेशा साफ और साफ रहना पसंद करती थी।
उन्होंने सात साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा चर्च में हुई। बाद में उन्होंने अन्य स्कूलों में कोर्सीकन भाषा का अध्ययन किया। धार्मिक विचारों वाली लड़की गोंझ को बारह साल की उम्र में 'नन' बनने का विचार आया।

मदर टेरेसा का भारत-आगमन

मदर टेरेसा 18 साल की उम्र में नवंबर 1928 में कोलकाता पहुंचीं। फिर वह दार्जिलिंग गईं, जहां उन्होंने सिस्टर मर्फी के मार्गदर्शन में अपना 'नन' प्रशिक्षण शुरू किया। प्रशिक्षण की यह अवधि प्रार्थना, अनुशासन और कड़ी मेहनत थी। 

1931 में उन्हें सिस्टर टेरेसा के नाम से जाना जाने लगा। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद, उन्होंने सेंट मैरी स्कूल, कोलकाता में पढ़ाना शुरू किया। बाद में वह उस स्कूल की प्रिंसिपल भी बनीं।  मदर टेरेसा 5 भाषाएं जानती थीं, जिनमे अल्बानी, हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली और सर्बो क्रोट सामील थी ।

मानवता की सेवा के लिए दृढ़ संकल्पित मदर टेरेसा

जब भी कोई सेवा की बात करता है तो हमारे जहन में सबसे पहला नाम मदर टेरेसा का आता है जो मानवता की एक जीती जागती मिसाल हैं। मदर टेरेसा भारत शिक्षण कार्यों के लिए आई थीं लेकिन अनाथ और कुष्ठ रोगियों को देखकर उनका हृदय परिवर्तन हो गया।

 लेकिन वह अपनी शिक्षण नौकरी से संतुष्ट नहीं थी। उसे लगा कि ईश्वर ने उसे मानवता की सेवा के लिए भेजा है। इसलिए उसने अपनी स्कूल की नौकरी छोड़ दी और गरीब और असहाय लोगों की सेवा करने का फैसला किया।

सबसे पहले उन्होंने बंगाल में मोतीझाली नामक स्थान पर झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए एक स्कूल खोला, जिसका नाम 'निर्मल हृदय' रखा गया। उन्होंने इस स्कूल की सफलता के लिए कड़ी मेहनत की।

पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को साफ-सफाई और स्वास्थ्य के बारे में भी बताया गया। इसके बाद उन्होंने स्कूल में ही एक छोटा अस्पताल खोला, जो स्कूल के घंटों के बाद झुग्गी के बीमार लोगों के लिए संचालित होता था, जिनमें से कई कुष्ठ रोग और तपेदिक जैसी बीमारियों से पीड़ित थे।

इस निस्वार्थ सेवा के कारण, उनकी प्रसिद्धि जल्द ही विदेशों में फैल गई। उन्होंने 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' नामक एक नया संघ बनाया, जिसे 1950 में वेटिकन द्वारा मान्यता दी गई थी। उनके निर्देशन में अनाथ, गरीब और बीमार बच्चों के लिए पूरे देश में 'शिशु-भवन' और 'खैराती अस्पताल' खोले गए।

मदर हाउस

मदर टेरेसा एक साहसी महिला थीं जो बिना सोचे बिना दूसरों की सेवा करती थीं। उन्होंने भारत के मूल नागरिक नहीं होते हुए भी स्थानीय लोगों के लिए जो कुछ किया, वह एक मिसाल है। मदर टेरेसा 1948 में भारत की नागरिक बनीं। कलकत्ता में जिस घर में मदर टेरेसा और उनकी बहनें रहती थीं, उसे 'मदर हाउस' के नाम से जाना जाने लगा। वहां अनुशासन बहुत सख्त था।

मदर टेरेसा खुद और उनकी बहनें मेहनत करती थीं। 'सादा जीवन उच्च विचार' उनके जीवन का आदर्श वाक्य था। 1966 तक कलकत्ता में 8000 और पूरे देश में 22000 कुष्ठ रोगियों का इलाज 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' द्वारा किया जा रहा था।

विश्व कल्याण की भावना

मदर टेरेसा ने भारत के बाहर इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रोम, सिसिली, फिलीपींस, जापान, पुर्तगाल, इथियोपिया, आयरलैंड, वेनेजुएला, बांग्लादेश, रूस, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में भी अपना 'घर' स्थापित किया।
कई देशों में समस्या 'रोटी' की नहीं बल्कि 'अकेलेपन' की थी। मदर टेरेसा ने अपने मिशनरियों के माध्यम से लोगों को उनके कष्टों से राहत देने की कोशिश की।

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पुरस्कार और सम्मान

मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने के लिए उन्हें असंख्य पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें प्रमुख हैं - नेहरू गुडविल इंटरनेशनल अवार्ड, टेम्पलटन अवार्ड', नोबेल प्राइज फॉर पीस' (1979),  भारत रत्न' (1980),  मेडल ऑफ फ्रीडम' (अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार), ग्रेट डॉटर ऑफ इंडिया, 'यूनेस्को अवार्ड' , 'नाइट्स ऑफ कोलंबस अवार्ड', नोट्रे डेम पुरस्कार, नेताजी पुरस्कार आदि।

मदर टेरेसा को अल्बानिया, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की मानद नागरिकता प्राप्त थी।

मदर टेरेसा का  अंतिम जीवन काल

गरीबों, अनाथों, निराश्रितों आदि की 'निरंतर सेवा' और 'अथक परिश्रम' का उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा । मदर टेरेसा अपने जीवन के अंतिम वर्षों में दिल की बीमारी से पीड़ित थीं | 73 वर्ष की उम्र में उनका पहला हार्ट अटैक हुआ था। 1989 में उन्हें फिर दिल का दौरा पड़ा। 

समय के क्रूर हाथ ने सितंबर 1997 में उसे हमसे छीन लिया। उसका शरीर समाप्त हो गया है, लेकिन उसके द्वारा किया गया? हमेशा अमर रहेंगे।

यह निबंध समाज सेविका मदर टेरेसा के बारे में था, जिन्होंने अपने सेवा कार्यों से लोगों  के दिलो मे "शांति और दया की दूत " की मिसाल बन गई। हम लोगो को उनकी जीवनी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मदर टेरेसा के जीवन से हम यह सिख सकते हैं कि हमें अपने से गरीब और जरूरतमंद लोगों की हर समय सहायता करनी चाहिए। 


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