गोपीनाथ बोरदोलोई पर हिंदी में निबंध - Essay on Gopinath Bordoloi in Hindi

आज के राजनैतिक समय को देखते हुवे लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई पर हिंदी में लघुनिबंध - Short Essay on Gopinath Bordoloi in Hindi जी की याद आती है। कारण उन जैसे लोक नेता कम ही पैदा होते हैं।

गोपीनाथ बोरदोलोई पर हिंदी में निबंध - Essay on Gopinath Bordoloi in Hindi

गोपीनाथ बोरदोलोई का जन्म :- 

 गोपीनाथ बोरदोलोई का जन्म 27 जेठ, सन् 1890 ई. में नगाँव जिलान्तर्गत रहा में हुआ था। उनके पिता का नाम डा. बुद्धेश्वर बरदले और माता का नाम प्राणेश्वरी देवी था। "उजीर बरद" नाम से वंश की एक राजकीय उपाधि भी थी।जब गोपीनाथ 12 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था। गुवाहाटी के भूमिकान्त बोरदोलोई की कन्या श्रीमती सुरबाला बरदलै के साथ उनका विवाह हुआ।

शिक्षा – गोपीनाथ बोरदोलोई पर हिंदी में निबंध

गोपीनाथ बोरदोलोई का नाम गुवाहाटी के कॉटन कालेजियेट स्कूल में लिखाया गया। 16 साल के पहले ही उन्होंने एट्रेंस की परीक्षा पास की। प्रथम श्रेणी मिली। साथ-साथ छात्रवृत्ति भी मिल गई। कॉटन कॉलेज में आई.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणा लेकर पास की और इस बार भी छात्र- -वृत्ति मिली।

कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बी.ए. किया। इसके बाद एम. ए. और कानून पढ़ने की उन्होंने कोशिश की, पर कोलकाता में रहकर पाठ्यक्रम पूरा न कर सके। गुवाहाटी आ गये और सोना राम हाईस्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए।

और वहीं रह कर गोपीनाथ बोरदोलोई ने कानून और एम.ए. की उपाधि परीक्षाएँ पास की। 

राजनैतिक जीवन

गोपीनाथ बोरदोलोई जी का राजनैतिक जीवन बड़ा ही महत्वपूर्ण है। वे गाँधी भक्त थे। इसीलिए असहयोग आन्दोलन में योग देकर अपना पेशा भी उन्होंने छोड़ा। इसी तरह देश-प्राण बरदल का मन देश सेवा की भावना में लगा। 1926 ई. के आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया। देश के दूसरे लोगों की तरह उन्हें भी कैदी बनाया गया। 

उन्होंने लोगों से विदेशी माल का बहिष्कार अंग्रेजों के साथ से हो और विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी से बने वस्तुओं को पहनने का आह्वान किया। उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि विदेशी वस्त्रों के त्याग के इसके साथ ही उन्हें सूत कातने पर भी ध्यान देना चाहिए ब्रिटिश सरकार ने गोपीनाथ बोरदोलोई  के कार्यों को विद्रोह के रूप में देखने लगी।


जिसके परिणामस्वरुप उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर 1 वर्ष कैद की सजा दी गई और सजा समाप्त होने के बाद उन्होंने अपने आप को संविधानता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया और वे संविधान का आंदोलन में हमेशा के लिए कार्य करने के लिए जुट गए।

अंग्रेजी 1967 सन् में बरदलै असम विधान सभा के सदस्य चुने गये। कांग्रेस दल के नायक भी हुए थे। इसी तरह लोगों में प्रिय बने। सन् 1946 ई. में पुनः असम विधान सभा में चुने गये। वे असम के मुख्यमन्त्री बनाए गये। उन्होंने गुवाहाटी के कामरूप एकाडेमी और भोलानाथ बरूआ कॉलेज की स्थापना किया। उन्होंने असम का अपना उच्च न्यायालय और विश्वविद्यालय खोलने की भी मांग की।

गोपीनाथ बोरदोलोई के परिश्रम से गुवाहाटी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। असम में राष्ट्रभाषा के व्यापक प्रचार समिति की स्थापना उन्होंने की। वे गाँवों की उन्नति भी चाहते थे। वे पहाड़ी भाइयों के लिए भी बहुत कुछ करते थे।

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गोपीनाथ बोरदोलोई का स्वभाव

वे स्वभाव से मृदु थे। मुख्यमंत्री होने पर भी उनके कपड़े फटे रहते थे, पर साफ होते थे। एक बार उन्होंने श्री प्रकाश से कहा- "मैं तो गरीब आदमी हूँ। गरीब ही रहना चाहता हूँ।"

वास्तव में इन्होंने असम प्रदेश की सेवा में अपने को दरिद्र कर रखा और मृत्यु के बाद संसार ने जाना कि वे अपने कुटुम्ब के लिए कुछ भी नहीं छोड़ गये। 'उन्होंने एक गृहस्थ का एक सार्वजनिक पुरुष का और शासक का सुन्दर आदर्श हमारे सामने उपस्थित किया है।

 गोपीनाथ बोरदोलोई ने असम की प्रगति के लिए बहुत कुछ किया, साथ ही भारत के संविधान के आंदोलन में भी योगदान दिया। उन्होंने आज तक के उस माहौल में भी राज्य में धार्मिक सौहार्द कायम रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान से आए लाखों निर्वासितों का पुनर्वास किया। शुद्ध और सरल जीवन व्यतीत करते हुए सदा सच्चाई और सफाई से ही वे काम करते थे। 

लेखक :- गोपीनाथ बोरदोलोई 

ये साहित्यक और लेखक के रूप में भी लोकप्रिय हैं। गोपीनाथ बोरदोलोई राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे, लेकिन वे भी अच्छे लेखक थे। जेल में रहते हुए, उन्होंने अत्रासक्तियोग, श्री रामचंद्र, हजरत मोहम्मद और बुध देव जैसी पुस्तकें लिखीं। 

उपसंहार

इसी तरह से उन्होंने असम के चारों तरफ की उन्नति की। इसीलिए असम के लोगों के बीच वे लोकप्रिय और जन नेता बन सके।

लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई जो असम के नागरिकों और निवासियों को रूलाकर 5 अगस्त सन् 1950 ई. को स्वर्ग सिधारे। उन्हें मरणोपरांत 1999 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वे कर्ममार्ग, त्याग आदि का आदर्श हमारे सम्मुख छोड़ गये। 




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