तुलसीदास पर निबंध हिन्दी मे - Essay on Tulsidas in Hindi

तुलसीदास का नाम हिन्दी के कवियों में सबसे अधिक लोकप्रिय है। आज हम तुलसीदास पर निबंध हिन्दी मे  - Essay on Tulsidas in Hindi पढ़ेंगे |  तुलसीदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं साथ ही यह भी है कि उन्होंने अपने काव्य में जिन आदर्शों की स्थापना की है, उनके कारण वे हिन्दू जाति के धर्मगुरू भी बन गये हैं।

यद्यपि काव्य सौंदर्य की दृष्टि से सूरदास और मलिक मुहम्मद जायसी उनकी टक्कर में ही हैं, किन्तु धार्मिक आदशों का वैसा सुदृढ़ आधार न होने का कारण वे जनता के हृदय पर उतनी गहरी छाप नहीं बिठा पाए हैं, जितनी की तुलसीदास

तुलसीदास पर निबंध हिन्दी मे  - Essay on Tulsidas in Hindi

सर्वश्रेष्ठ कवि मानने का कारण

तुलसीदास को हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ कवि मानने का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि तुलसीदास ने अपने समय में प्रचलित सभी शौलियों में काव्य रचना की। उस समय अवधी और ब्रज दो ही साहित्यिक भाषाएँ थीं।

उन्होंने दोनों में ही सफलता पूर्वक कविता लिखी। उन्होंने 'रामचरितमानस' प्रबन्ध काव्य और विनय पत्रिका मुक्त काव्य लिखा। विविध प्रकार के उनके काव्य का बह्य पक्ष अर्थात् कला पक्ष अपने प्रतिद्वंद्वियों की अपेक्षा कहीं अधिक पुष्ट हैं।

इसी प्रकार उनके काव्य का अन्तरंग पक्ष भी जायसी और सूरदास की अपेक्षा कहीं विस्तृत और गम्भीर है। सूरदास ने जीवन के बहुत सीमित क्षेत्र को ही अपने काव्य का विषय बनाया है। श्रृंगार और वात्सल्य के बाहर वे नहीं गए। परन्तु तुलसीदास ने जीवन के विविध पक्षों को अपनी रचना का विषय बनाया है।

तुलसीदास की कल्पना

उन्होंने अपने प्रबन्ध काव्य में नये-नये प्रसंगों की कल्पना की है और उनका बहुत ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है। इन दोनों बातों से बढ़कर है तुलसी की आदर्शवादिता। सूरदास ने भगवान के लोकरंजक रूप का वर्णन किया है।

उनके कृष्ण ऐसे अनेक काम कर बैठते हैं जो सामाजिक दृष्टि से निन्दनीय है। परन्तु तुलसी ने भगवान के लोकरक्षक रूप का वर्णन किया है। उनके राम मनुष्य नहीं, स्वयं भगवान है। उनके राम सज्जनों की रक्षा करनेवाले, काव्यनिष्ट और दुष्टों को दण्ड देनेवाले हैं। उनकी कल्पना से दीन-दुखियों, शोषितों और पीड़ितों को सांत्वना मिलती है, कुछ सहारा मिलता है।

तुलसीदास द्वारा प्रस्तुत रामभक्ति उस काल के हिन्दुओं के लिए बहुत अधिक आशाप्रद और उत्साहदायक सिद्ध हुई है। विजेता मुसलमानों के भय त्रस्त प्रजा को कृष्ण भक्ति में कुछ आनन्द अवश्य दिखाई पड़ा था, किन्तु विजातीय संस्कृति के मुकाबले के लिए जिस सुदद आधार की आवश्यकता थी, वह उनको रामभक्ति से ही प्राप्त हुआ।

तुलसीदास का जीवन

तुलसीदास का अपना जीवन बहुत कष्टों में ही व्यतीत हुआ। अशुभ लग्न में जन्म होने के कारण उनके माता-पिता ने जन्म होते ही उन्हें त्याग दिया था। एक दासी ने जिसका नाम मुनिया था, उनका पालनपोषण किया। किन्तु कुछ वर्ष बाद ही मुनिया मर गयी।

तुलसीदास फिर अनाथ हो गये। काफी दिन तक इधर-उधर भटकते रहे। पेट भरने के लिए उन्हें बहुत बार भीख माँगनी पड़ी। अन्त में उनकी भेंट बाबा नरहरिदास से हुई। उन्होंने कृपा करके तुलसीदास को अपने पास रखा और पढ़ाया। यथासमय तुलसीदास का विवाह हो गया।

परन्तु भाग्य को तुलसीदास का यह सुख भी सहन न हुआ। प्रेम की के कारण एक प्रसंग ऐसा आ पड़ा कि इस विवाह का विच्छेद हो गया। पत्नी ने तुलसीदास को कुछ शब्द ऐसे कह दिए, जिनकी चोट उनके हृदय पर बहुत गहरी लगी और वे विरक्त हो गये और छोड़कर तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। एक बार उन्हें प्लेग भी हो गयी थी, इसमें उन्होंने बहुत कष्ट पाया, किन्तु बच गये।

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लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद संवत् 1680 में उनकी मृत्यु हो गयी। तुलसीदास ने भक्ति के लिए जिन राम को चुना है, वे सर्वगुणसम्पन्न और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनके प्रति तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की है। और इसीलिए पग-पग पर उनकी दया की कामना करते हैं।

रामचरितमानस तो उत्कर्ष और गौरव अनेक प्रकार से दिखाया है, साथ ही विनय पत्रिका में भी सर्वशक्तिमान भगवान के सम्मुख क्षुद्र भक्त की विनय जैसी मार्मिक रूप में प्रकट हुई है, वैसी हिन्दी साहित्य में अन्यत्र नहीं है।

उनकी विशेषताए

तुलसीदास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे समन्वयवादी हैं। जिस बातों पर उनकी पूरी आस्था नहीं भी है, उनका भी वे खण्डन नहीं करते, बल्कि अपने मत से उसका मेल बैठाने की चेष्टा करते हैं। तुलसी स्वयं सगुण उपासक थे।

किन्तु उन्होंने निर्गुण उपासना का खण्डन नहीं किया, बल्कि निर्गुण और सगुण दोनों के समन्वय का प्रयत्न किया। इसी प्रकार उनकी रचनाओं में लोक और शास्त्र का, भक्ति और ज्ञान का, वैराग्य और गोर्हस्थ्य का समन्वय दिखाई पड़ता है। इसा समन्वयवादिता के कारण ही वे इतने लोकप्रिय हो सके।

तुलसी ने अपने 'रामचरितमानस' में आदर्श चरित्रों की कल्पना इतने सुन्दर ढंग से की है कि ये चरित्र ही बाद में हिन्दू-जीवन के आदर्श बन गये, जैसे राम, जैसा राजा भरत और लक्ष्मण जैसे भाई सीता जैसी पत्नी और हनुमान जैसे सेवक। इन सब सामाजिक महत्व को बातों के अतिरिक्त विशुद्ध कवित्व की दृष्टि से भी तुलसीदास का आसन बहुत ऊँचा है।

रामचरितमानस

उनका महाकाव्य 'रामचरितमानस' प्रबन्ध की दृष्टि से हिन्दी में बेजोड़ है। इसकी कथा अत्यन्त रोचक है। मुख्य कथा के अतिरिक्त इसमें कई गौण कथाएँ भी हैं। तुलसीदास ने सभी मार्मिक प्रसंगों को भलीभाँति पहचाना है और उनका विस्तार से वर्णन किया है।

रामचरितमानस में लगभग सभी रसों की अत्यन्त मनोहारी व्यंजना हुई है। इस महाकाव्य में चरित्र चित्रण इतना सफल हुआ है कि उसके चरित्र जैसे हमारे इतिहास के पात्र बन गये हैं। और ये चरित्र सब अच्छे ही नहीं हैं, वरन् भले-बुरे, धर्मात्मा और पापी, उच्च और नीच सभी प्रकार के हैं।

सूरदास की कला की हम कला के लिए कला कह सकते हैं। उसका एकमात्र प्रयोजन केवल मन को रस-मग्न कर देना है। किन्तु तुलसी को कला कल्याण के लिये है, मंगलमय आदर्श के लिये है। इस कारण तुलसी के काव्य की उपयोगिता और भी बढ़ गयी है।

तुलसीदास ने वैसे तो अनेक ग्रन्थ रचे हैं, परन्तु उनका यश मुख्यतया 'रामचरितमानस' और 'विनय पत्रिका' के कारण है। रामचरितमानस की कथा तुलसी की अपनी नहीं है। वह मुख्यतया रामायण से ली गई है। परन्तु उसमें जहाँ-तहाँ अपनी कल्पना से कुछ जोड़ और परिवर्तन कर दिये गये हैं।

उपसंहार

तुलसीदास ने हिन्दू-धर्मशास्त्रों का और प्राचीन साहित्य का अच्छी तरह अध्ययन किया था। यह बात रामचरितमानस के पढ़ने से स्पष्ट हो जाती है।

काव्य के चमत्कार, समन्वय बुद्धि और आदर्शों की स्थापना के कारण तुलसीदास हिन्दी के अन्य सब कवियों की अपेक्षा बहुत महान दीख पड़ते हैं।

उनकी महानता का सबसे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है कि उनके 'रामचरितमानस ' का देश की जनता में अन्य किसी भी काव्य-ग्रन्थ की अपेक्षा अधिक प्रचार हुआ और राजा से लेकर रंक तक सभी लोग उसे श्रद्धा और आनन्द के साथ पढ़ते हैं।

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