बिहंगी कवि स्व. रघुनाथ चौधरी पर निबंध (Essay on Raghunath Choudhary)
बिहंगी कवि स्व. रघुनाथ चौधरी का जन्म गुरुवार, 20 जनवरी 1879 को शुक्ल चतुर्थी गणेश पूजा के दिन असम राज्य के कामरूप जिले के अंतर्गत लाओपारा नामक गाँव में हुआ था।
उनके पिता "श्री भोलानाथ चौधरी" एक अमीर किसान थे और वे सही अर्थों में भोलानाथ थे। चौधरी की माँ का नाम "दयालता चौधरी" था। वह बहुत दयालु और धर्मपरायण महिला भी थीं, चौधरी जी उनके माता-पिता की तीसरी संतान थीं। आपके जन्म के दिन परिवार के पुजारी ने आकर भोलानाथ जी से कहा कि यह आपके वंश का रघुनाथ है। रामचंद्र की तरह यह भी आपके कुल का नाम रोशन करेगा। पुजारी की बातें सच निकलीं।
लग्न पत्रिका के अनुसार कवि का नाम सोमनाथ चौधरी था। लेकिन पुरोहित जी की भविष्यवाणी के साथ ही उनका दिया हुआ नाम भी लोकप्रिय हो गया।
रघुनाथ चौधरी का बचपन
"रघुनाथ चौधरी" का बचपन काफी परेशानियों में बीता। बरामदे से गिरने के कारण दाहिना पैर हमेशा के लिए बेकार हो गया। यह दुखद घटना तब हुई जब आप नौ महीने के थे। विधि का गुस्सा यूं ही शांत नहीं हुआ। जब आप केवल चार वर्ष के थे, तब आपके दोनों भाई-बहन इस दुनिया से चले गए।
इस घटना के एक महीने बाद आप की माँ का भी निधन हो गया। पिता भोलेनाथ जी पागल हो गए। रिश्तेदार और आपके पड़ोसी आपकी सारी संपत्ति को आपस में बांटने की कोशिश करने लगे। आपका जीवन अधिक दर्दनाक हो गया है। जयपाल दास नाम के गांव के एक सज्जन ने आपको शरण दी। जब आप के पिता पूरी तरह से स्वस्थ हो गए तो उन्होने आप अपने घर ले गए।
रघुनाथ चौधरी की प्राथमिक शिक्षा
आप आठ साल की उम्र तक चल नहीं पा रहे थे, इसलिए आपकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। आपके परिवार में अव्यवस्था देखकर भोलानाथ जी के मित्र बालकराम चौधरी आपको क्षेत्रहारीय से स्वयं ही ले आए और वहां से बालक्रमजी का पुत्र आपको गुवाहाटी में गर्गाराम चौधरी के यहां ले गया।
उन्होंने आपको अपने बच्चों की तरह मानना शुरू कर दिया। उस समय असम के स्कूलों और कॉलेजों में बांग्ला भाषा प्रचलित थी।
रघुनाथ चौधरी की स्कूल शिक्षा
रघुनाथ चौधरी का दाखिला मिडिल स्कूल में कराया गया। पैर दर्द के कारण आप नियमित रूप से स्कूल नहीं जा सके, फिर भी आपने परीक्षा उत्तीर्ण करना जारी रखा। लेकिन एक दिन की घटना ने आपको अपनी स्कूली शिक्षा छोड़ने और प्रकृति से शिक्षा लेने के लिए मजबूर कर दिया। आठवीं कक्षा की अर्धवार्षिक परीक्षा के गणित के पेपर में दस अंक अधिक लाने थे।
लेकिन किसी कारणवश गणित के शिक्षक ने आपको वे अंक नहीं दिए। जब आपने इसके लिए अनुरोध करना शुरू किया, तो गणित के शिक्षक के साथ-साथ प्रधानाध्यापक पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा , आपके अनुरोध का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनके स्वतंत्र मन में विद्रोह की भावना जागृत हुई।
आप तेजपुर भाग गए, लेकिन किसी तरह आपको वापस लाया गया। फिर भी काफी समझाने के बाद भी आप स्कूल जाने के लिए राजी नहीं हुए।
इस बात को लेकर पिता को बुरा लगा और वे नाराज हो गए और बोले कि आज से मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखूंगा। आपकी स्कूली शिक्षा आठवीं कक्षा से ही समाप्त हो गई थी।
नैसर्गिक शिक्षा
वास्तव में, चौधरी जी की नैसर्गिक शिक्षा छात्र जीवन समाप्त होने के बाद ही शुरू हुई। पढ़ाने के साथ-साथ पढ़ाई भी शुरू कर दी। आपने पास के लड़कियों के स्कूल में पढ़ना शुरू कर दिया। आपके हृदय में मानव शिशुओं के लिए एक नई भावना जागृत हुई है। चौधरी जी ने बच्चों के लिए 'मैना' (मैना) नामक पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी भी ली।
इसी बीच चौधरी जी के पिता का निधन हो गया। अब दुनिया में आप का कोई नहीं था। अब आपने गुवाहाटी से बाहर बेलतला नामक स्थान पर रहने का फैसला किया है। लेकिन बच्चों के आकर्षण ने आपको वहां रुकने नहीं दिया तो गुवाहाटी आना पड़ा। इस बार आप सामाजिक कार्यों से जुड़े। विशेष रूप से संगीत-अनुष्ठान, पुस्तकालय स्थापना, पत्रिका प्रकाशन आदि में रुचि लेना शुरू कर दिया।
रघुनाथ चौधरी का मोहक गुण
1901 में, असम में एकमात्र सरकारी कॉलेज कॉटन कॉलेज स्थापित किया गया था। इस कॉलेज के उद्घाटन समारोह में कवि ने 'आवाहन' नामक एक स्वरचित कविता का पाठ किया था। असम के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन प्रारम्भिक अवस्था में लिखी गई कविता 'आवाहन' में मिलता है।
1901 में सत्यनाथ बारा के संपादन में 'जोनाकी' पत्रिका को पुनर्जीवित किया गया और चौधरी जी इसके सहायक संपादक बने। हालांकि, किसी कारणवश इसका प्रकाशन रोक दिया गया था। आपकी कविता 'मरमार पाखी' इसी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
पक्षियों पर जितनी कविताएं आपने लिखी हैं, उतनी किसी कवि ने नहीं लिखी। इसलिए आप का नाम भी 'बिहंगी कवि' हो गया।
रघुनाथ चौधरी का जीवनकाल
आप अपने जीवन काल में कई पत्रिकाओं के संपादन कार्य से जुड़े रहे। लेकिन आपका निजी जीवन बहुत दुखी था। बचपन मे ही आप के पैर खराब हो गए थे, भाई-बहन, माता-पिता सब एक-एक करके गुजर गए। स्कूल की नौकरी भी उसी झंझट में रही। 1899 ई. में आप जिस स्कूल में पढ़ाते थे, उसे सरकार ने बंद कर दिया।
इसने आपके दिल पर बड़ा प्रभाव डाला। आप कभी किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं बने, बल्कि हमेशा देश की सेवा में लगे रहे। 1907 तक, उन्होंने अपना समय बेलताला गाँव में कृषि करने में बिताया। 1911 में जर्मन पुजारियों के एक माध्यमिक विद्यालय में नौकरी शुरू की, लेकिन आप वहां बहुत लंबे समय तक नहीं रह सके। अब आप फिर से बेलताला लौट आए और साहित्यिक सेवा में जुट गए।
रघुनाथ चौधरी का असमिया साहित्य में योगदान
1914 से 1921 तक आपने असमिया साहित्य को वो मोती दिए जो किसी और ने नहीं दिए। आपने यहाँ के टेकी, दहीकटार और सदरी आदि काव्य पुस्तकों की रचना की। फिर महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप आपको एक वर्ष के लिए जेल भी जाना पड़ा।
1958 में उनकी कविता 'नवमालिका' प्रकाशित हुई। आप मृत्युशैय्या पर लेटे हुए भी लिखते रहे। किसी और ने असमिया साहित्य की इतनी सेवा नहीं की जितनी आपने की है।
ऐसे कर्मठ, प्रकृति उपासक, साहित्यकार, देशप्रेमी कवि का निधन वर्ष 1967 में हुआ।
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